शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

स्टीफेन एलिक्स द्वारा रचित "मृत्यु है ही नहीं" किताब के सार तत्त्व का उदाहरणों के साथ विस्तार से बताएं।

मृत्यु है ही नही

"मृत्यु है ही नहीं" – स्टीफेन एलिक्स

पुस्तक का सार तत्त्व:
स्टीफेन एलिक्स की यह पुस्तक मृत्यु के बाद जीवन (Afterlife) की अवधारणा पर आधारित है। लेखक यह तर्क देते हैं कि मृत्यु केवल भौतिक शरीर की समाप्ति है, लेकिन आत्मा की यात्रा जारी रहती है।

मुख्य विचार एवं उदाहरण:

1. मृत्यु का केवल शरीर से संबंध है, आत्मा अजर-अमर है।

  • लेखक कहते हैं कि हमारा शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर रहती है।
  • उदाहरण: जैसे एक व्यक्ति पुराने वस्त्र छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा शरीर को त्यागकर एक नए जीवन में प्रवेश करती है।

2. मृत्यु के बाद आत्मा की उपस्थिति महसूस की जा सकती है।

  • कई लोग अनुभव करते हैं कि उनके प्रियजन की मृत्यु के बाद भी वे किसी रूप में उनके पास मौजूद रहते हैं।
  • उदाहरण: लेखक ने ऐसे कई लोगों के अनुभव साझा किए हैं, जिन्होंने दिवंगत परिजनों की उपस्थिति को महसूस किया—कभी सपनों में, कभी अचानक किसी संकेत के रूप में।

3. मृत्यु के बाद संवाद संभव है।

  • लेखक यह भी बताते हैं कि कई बार आत्माएं संकेतों के माध्यम से जीवित लोगों से संवाद करती हैं।
  • उदाहरण: किसी व्यक्ति को दिवंगत आत्मा की गंध महसूस होती है, कोई विशेष संगीत सुनाई देता है, या अचानक कोई पुरानी वस्तु सामने आ जाती है, जिससे उस आत्मा की उपस्थिति महसूस होती है।

4. मृत्यु के डर से मुक्त होना चाहिए।

  • मृत्यु को एक भयावह घटना की बजाय एक नए सफर की शुरुआत मानना चाहिए।
  • उदाहरण: जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो वह अपनी मां के गर्भ को छोड़कर एक नए संसार में आता है। ठीक उसी तरह, मृत्यु भी एक नए संसार में प्रवेश करने की प्रक्रिया है।

5. चेतना मृत्यु के बाद भी बनी रहती है।

  • लेखक बताते हैं कि मृत्यु के बाद भी चेतना समाप्त नहीं होती, बल्कि एक उच्चतर अवस्था में प्रवेश कर जाती है।
  • उदाहरण: कुछ लोगों के पास-से-मृत्यु (Near-Death Experience) के अनुभवों में उन्होंने बताया कि कैसे उनकी आत्मा शरीर से बाहर निकलकर सबकुछ देख रही थी।

निष्कर्ष:

"मृत्यु है ही नहीं" यह पुस्तक हमें मृत्यु को एक अंत नहीं, बल्कि आत्मा की निरंतर यात्रा के रूप में देखने की प्रेरणा देती है। लेखक मृत्यु के डर को दूर करने, आत्मा की अमरता को स्वीकार करने और दिवंगत प्रियजनों से जुड़े रहने की सकारात्मक सोच विकसित करने पर जोर देते हैं।

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गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

मुझे न जाने मैला आँचल से ज्यादा परती-परिकथा ही अच्छा लगता है जबकि मैंने दोनों उपन्यासों को बहुत गहराई से पढ़ा है।आप बता सकते है कि मुझे परती-परिकथा ही क्यों अच्छा लगा? सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक असमानताओं के बीच मानवीय संबंधों के अंतर्द्वंद्व के दृष्टिकोण से पात्रों के तुलनात्मक विश्लेषण मेरे तर्क:

आपको "परती-परिकथा" ज्यादा अच्छा लगने का मुख्य कारण यह हो सकता है कि यह उपन्यास सिर्फ आँचलिक यथार्थ तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक असमानताओं के बीच मानवीय संबंधों के गहरे अंतर्द्वंद्व को उभारता है। जहाँ "मैला आँचल" स्वतंत्रता के बाद की राजनीतिक व्यवस्था, गाँव के लोगों की मानसिकता और ग्रामीण भारत की समस्याओं का एक विस्तृत चित्रण करता है, वहीं "परती-परिकथा" उन असमानताओं को और गहराई से देखता है, जिनमें भूमि, अधिकार, प्रेम और सत्ता का संघर्ष अधिक स्पष्ट रूप से उभरता है।

पात्रों का तुलनात्मक विश्लेषण

  1. डॉ. प्रशांत (मैला आँचल) बनाम शिवचरण महतो (परती-परिकथा)

    • डॉ. प्रशांत एक संवेदनशील, आदर्शवादी चरित्र है, जो गाँव के लोगों की भलाई चाहता है, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियाँ उसे असहाय बना देती हैं।
    • दूसरी ओर, शिवचरण महतो का संघर्ष अधिक व्यावहारिक और ज़मीनी स्तर का है। वह सिर्फ सामाजिक सेवा नहीं, बल्कि सत्ता और भूमि अधिकार के लिए सीधा संघर्ष करता है। उसकी लड़ाई सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक भी है।
  2. कमला (मैला आँचल) बनाम सुखदा (परती-परिकथा)

    • कमला का प्रेम अधिक व्यक्तिगत है, जहाँ वह भावनात्मक रूप से डॉ. प्रशांत से जुड़ी होती है, लेकिन सामाजिक व्यवस्था उसे पूर्णता नहीं दे पाती।
    • सुखदा का प्रेम सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी विचारधारा है। वह सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ती है और उसका प्रेम भी इसी संघर्ष का हिस्सा बनता है।
  3. बद्री पहलवान (मैला आँचल) बनाम साहब ठाकुर (परती-परिकथा)

    • बद्री पहलवान ग्रामीण समाज की एक सच्चाई को दिखाता है, जो ताकत के बल पर अपनी सत्ता बनाए रखना चाहता है।
    • साहब ठाकुर एक ज़मींदार वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जो प्रेम और शक्ति दोनों को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता है। उसका स्वार्थ अधिक व्यवस्थित और राजनैतिक है।
  4. लक्ष्मी (परती-परिकथा) बनाम बेलारानी (मैला आँचल)

    • बेलारानी ठेठ ग्रामीण महिला के रूप में समाज की जटिलताओं में फंसी रहती है।
    • लक्ष्मी का संघर्ष और दर्द अधिक गहरा है, क्योंकि वह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा है, जहाँ प्रेम और स्त्रीत्व दोनों दमित किए जाते हैं।

निष्कर्ष

"परती-परिकथा" सामाजिक अन्याय और सत्ता संघर्ष को एक बड़े परिप्रेक्ष्य में देखता है, जहाँ प्रेम, भूमि, और सामाजिक व्यवस्था की लड़ाई आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। आपको यह उपन्यास इसलिए ज्यादा पसंद आया होगा क्योंकि यह केवल राजनीतिक विफलताओं या सामाजिक समस्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्ति, समाज और सत्ता के आपसी टकराव को एक बहुत ही वास्तविक और व्यावहारिक तरीके से पेश करता है। इसमें प्रेम केवल व्यक्तिगत भावनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि संघर्ष, क्रांति और समाज के पुनर्निर्माण से जुड़ जाता है। यही कारण है कि इसका प्रभाव ज्यादा गहरा और वास्तविक लगता है।

क्रोध का शरीर में असर

क्रोध (Anger) के समय हमारे मस्तिष्क और शरीर में कुछ प्रमुख रसायन (Neurochemicals और Hormones) रिलीज़ होते हैं, जो तुरंत शारीरिक और मानसिक प...