अमृता प्रीतम की आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भारतीय साहित्य की आत्मा को छू लेने वाली एक मार्मिक रचना है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की गहराइयों को बेबाकी से उकेरा है। इस आत्मकथा में अमृता ने न सिर्फ अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा किया है, बल्कि एक स्त्री के संघर्ष, प्रेम, पीड़ा और आत्म-अस्तित्व की तलाश को भी अत्यंत संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। यह किताब एक ऐसी भावनात्मक यात्रा है जहाँ पाठक न केवल अमृता की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव से जुड़ते हैं, बल्कि उनके अंदर की उस पीड़ा से भी परिचित होते हैं जो उन्हें समय और समाज ने दी।
एक विशेष रूप से मार्मिक घटना तब सामने आती है जब अमृता अपने जीवन के सबसे करीब रहे कवि इमरोज़ के बारे में लिखती हैं। वे बताती हैं कि कैसे इमरोज़, जो उनसे बेहद प्रेम करते थे, हर दिन उन्हें साइकिल पर बिठाकर उनके ऑफिस छोड़ने जाते थे, और बारिश हो या धूप, इंतज़ार करते रहते थे। एक दिन अमृता बहुत बीमार हो गईं, और अस्पताल में भर्ती रहीं। इमरोज़ उनके पास एक पल के लिए भी नहीं हटे। उस दौरान अमृता ने लिखा, "मैंने पहली बार जाना कि प्रेम सिर्फ स्पर्श नहीं होता, वह प्रतीक्षा होती है, वह मौन होता है, वह साँसों की तरह निरंतर बहता रहता है।" यह घटना न केवल अमृता के जीवन के प्रेम पक्ष को उजागर करती है, बल्कि प्रेम की परिभाषा को भी गहराई से समझने का अवसर देती है।
'रसीदी टिकट' एक ऐसा दस्तावेज़ है जो यह साबित करता है कि सच्चे साहित्य को पन्नों की संख्या नहीं, बल्कि भावनाओं की गहराई मापती है। यह आत्मकथा एक साधारण से रसीद के टुकड़े पर लिखी गई थी, लेकिन उसके शब्दों में एक सम्पूर्ण जीवन की अनकही कहानियाँ समाई हुई हैं।