शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

स्टीफेन एलिक्स द्वारा रचित "मृत्यु है ही नहीं" किताब के सार तत्त्व का उदाहरणों के साथ विस्तार से बताएं।

मृत्यु है ही नही

"मृत्यु है ही नहीं" – स्टीफेन एलिक्स

पुस्तक का सार तत्त्व:
स्टीफेन एलिक्स की यह पुस्तक मृत्यु के बाद जीवन (Afterlife) की अवधारणा पर आधारित है। लेखक यह तर्क देते हैं कि मृत्यु केवल भौतिक शरीर की समाप्ति है, लेकिन आत्मा की यात्रा जारी रहती है।

मुख्य विचार एवं उदाहरण:

1. मृत्यु का केवल शरीर से संबंध है, आत्मा अजर-अमर है।

  • लेखक कहते हैं कि हमारा शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर रहती है।
  • उदाहरण: जैसे एक व्यक्ति पुराने वस्त्र छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा शरीर को त्यागकर एक नए जीवन में प्रवेश करती है।

2. मृत्यु के बाद आत्मा की उपस्थिति महसूस की जा सकती है।

  • कई लोग अनुभव करते हैं कि उनके प्रियजन की मृत्यु के बाद भी वे किसी रूप में उनके पास मौजूद रहते हैं।
  • उदाहरण: लेखक ने ऐसे कई लोगों के अनुभव साझा किए हैं, जिन्होंने दिवंगत परिजनों की उपस्थिति को महसूस किया—कभी सपनों में, कभी अचानक किसी संकेत के रूप में।

3. मृत्यु के बाद संवाद संभव है।

  • लेखक यह भी बताते हैं कि कई बार आत्माएं संकेतों के माध्यम से जीवित लोगों से संवाद करती हैं।
  • उदाहरण: किसी व्यक्ति को दिवंगत आत्मा की गंध महसूस होती है, कोई विशेष संगीत सुनाई देता है, या अचानक कोई पुरानी वस्तु सामने आ जाती है, जिससे उस आत्मा की उपस्थिति महसूस होती है।

4. मृत्यु के डर से मुक्त होना चाहिए।

  • मृत्यु को एक भयावह घटना की बजाय एक नए सफर की शुरुआत मानना चाहिए।
  • उदाहरण: जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो वह अपनी मां के गर्भ को छोड़कर एक नए संसार में आता है। ठीक उसी तरह, मृत्यु भी एक नए संसार में प्रवेश करने की प्रक्रिया है।

5. चेतना मृत्यु के बाद भी बनी रहती है।

  • लेखक बताते हैं कि मृत्यु के बाद भी चेतना समाप्त नहीं होती, बल्कि एक उच्चतर अवस्था में प्रवेश कर जाती है।
  • उदाहरण: कुछ लोगों के पास-से-मृत्यु (Near-Death Experience) के अनुभवों में उन्होंने बताया कि कैसे उनकी आत्मा शरीर से बाहर निकलकर सबकुछ देख रही थी।

निष्कर्ष:

"मृत्यु है ही नहीं" यह पुस्तक हमें मृत्यु को एक अंत नहीं, बल्कि आत्मा की निरंतर यात्रा के रूप में देखने की प्रेरणा देती है। लेखक मृत्यु के डर को दूर करने, आत्मा की अमरता को स्वीकार करने और दिवंगत प्रियजनों से जुड़े रहने की सकारात्मक सोच विकसित करने पर जोर देते हैं।

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गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

मुझे न जाने मैला आँचल से ज्यादा परती-परिकथा ही अच्छा लगता है जबकि मैंने दोनों उपन्यासों को बहुत गहराई से पढ़ा है।आप बता सकते है कि मुझे परती-परिकथा ही क्यों अच्छा लगा? सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक असमानताओं के बीच मानवीय संबंधों के अंतर्द्वंद्व के दृष्टिकोण से पात्रों के तुलनात्मक विश्लेषण मेरे तर्क:

आपको "परती-परिकथा" ज्यादा अच्छा लगने का मुख्य कारण यह हो सकता है कि यह उपन्यास सिर्फ आँचलिक यथार्थ तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक असमानताओं के बीच मानवीय संबंधों के गहरे अंतर्द्वंद्व को उभारता है। जहाँ "मैला आँचल" स्वतंत्रता के बाद की राजनीतिक व्यवस्था, गाँव के लोगों की मानसिकता और ग्रामीण भारत की समस्याओं का एक विस्तृत चित्रण करता है, वहीं "परती-परिकथा" उन असमानताओं को और गहराई से देखता है, जिनमें भूमि, अधिकार, प्रेम और सत्ता का संघर्ष अधिक स्पष्ट रूप से उभरता है।

पात्रों का तुलनात्मक विश्लेषण

  1. डॉ. प्रशांत (मैला आँचल) बनाम शिवचरण महतो (परती-परिकथा)

    • डॉ. प्रशांत एक संवेदनशील, आदर्शवादी चरित्र है, जो गाँव के लोगों की भलाई चाहता है, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियाँ उसे असहाय बना देती हैं।
    • दूसरी ओर, शिवचरण महतो का संघर्ष अधिक व्यावहारिक और ज़मीनी स्तर का है। वह सिर्फ सामाजिक सेवा नहीं, बल्कि सत्ता और भूमि अधिकार के लिए सीधा संघर्ष करता है। उसकी लड़ाई सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक भी है।
  2. कमला (मैला आँचल) बनाम सुखदा (परती-परिकथा)

    • कमला का प्रेम अधिक व्यक्तिगत है, जहाँ वह भावनात्मक रूप से डॉ. प्रशांत से जुड़ी होती है, लेकिन सामाजिक व्यवस्था उसे पूर्णता नहीं दे पाती।
    • सुखदा का प्रेम सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी विचारधारा है। वह सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ती है और उसका प्रेम भी इसी संघर्ष का हिस्सा बनता है।
  3. बद्री पहलवान (मैला आँचल) बनाम साहब ठाकुर (परती-परिकथा)

    • बद्री पहलवान ग्रामीण समाज की एक सच्चाई को दिखाता है, जो ताकत के बल पर अपनी सत्ता बनाए रखना चाहता है।
    • साहब ठाकुर एक ज़मींदार वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जो प्रेम और शक्ति दोनों को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता है। उसका स्वार्थ अधिक व्यवस्थित और राजनैतिक है।
  4. लक्ष्मी (परती-परिकथा) बनाम बेलारानी (मैला आँचल)

    • बेलारानी ठेठ ग्रामीण महिला के रूप में समाज की जटिलताओं में फंसी रहती है।
    • लक्ष्मी का संघर्ष और दर्द अधिक गहरा है, क्योंकि वह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा है, जहाँ प्रेम और स्त्रीत्व दोनों दमित किए जाते हैं।

निष्कर्ष

"परती-परिकथा" सामाजिक अन्याय और सत्ता संघर्ष को एक बड़े परिप्रेक्ष्य में देखता है, जहाँ प्रेम, भूमि, और सामाजिक व्यवस्था की लड़ाई आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। आपको यह उपन्यास इसलिए ज्यादा पसंद आया होगा क्योंकि यह केवल राजनीतिक विफलताओं या सामाजिक समस्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्ति, समाज और सत्ता के आपसी टकराव को एक बहुत ही वास्तविक और व्यावहारिक तरीके से पेश करता है। इसमें प्रेम केवल व्यक्तिगत भावनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि संघर्ष, क्रांति और समाज के पुनर्निर्माण से जुड़ जाता है। यही कारण है कि इसका प्रभाव ज्यादा गहरा और वास्तविक लगता है।

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

फणीश्वरनाथ नाथ रेणु द्वारा रचित ' मैला आँचल 'उपन्यास का समकालीनता के संदर्भ में वर्णन करें। डॉ प्रशांत के प्रेम तत्व का भी वर्णन करें।। https://amzn.to/3Yf8erQ

'मैला आँचल' उपन्यास और उसकी समकालीनता

फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित 'मैला आँचल' (1954) हिंदी साहित्य का एक कालजयी उपन्यास है, जिसे आंचलिक उपन्यास लेखन की परंपरा में मील का पत्थर माना जाता है। यह बिहार के पूर्णिया जिले के ग्रामीण जीवन को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है।

समकालीनता के संदर्भ में 'मैला आँचल'

1. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

'मैला आँचल' स्वतंत्रता के बाद के भारतीय समाज का चित्रण करता है, जहाँ स्वतंत्रता संग्राम की ऊर्जा और नई राजनीति की जटिलताएँ स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती हैं। आज भी भारत में ग्राम्य राजनीति, जातिवाद, भ्रष्टाचार, और विकास की असमानता जैसी समस्याएँ मौजूद हैं, जो इस उपन्यास को समकालीन बनाती हैं।

2. सामाजिक यथार्थ

यह उपन्यास ग्रामीण समाज की कड़वी सच्चाइयों को उजागर करता है—जातिगत भेदभाव, स्त्रियों की स्थिति, गरीबी, अशिक्षा और अंधविश्वास। ये समस्याएँ आज भी भारतीय ग्रामीण समाज में प्रासंगिक हैं, जिससे उपन्यास की समकालीनता बनी रहती है।

3. आर्थिक असमानता

रेणु ने गाँवों में व्याप्त सामंतवादी व्यवस्था, आर्थिक शोषण और गरीबी को दर्शाया है। भारत में आज भी ग्रामीण इलाकों में आर्थिक असमानता और किसानों की समस्याएँ वैसी ही बनी हुई हैं, जिससे यह उपन्यास आज भी सामयिक प्रतीत होता है।

4. सांस्कृतिक और भाषाई समृद्धि

'मैला आँचल' में स्थानीय बोलियों, कहावतों, लोकगीतों और लोककथाओं का समावेश किया गया है, जो आज भी क्षेत्रीय साहित्य और सिनेमा को प्रभावित करता है। स्थानीय भाषाओं और लोकसंस्कृति के प्रति रुचि बढ़ने के कारण यह उपन्यास आज भी समीचीन बना हुआ है।

5. चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएँ

डॉ. प्रशांत की कथा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा को दर्शाती है। आज भी ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ अपर्याप्त हैं, जिससे यह उपन्यास आधुनिक संदर्भ में भी प्रासंगिक हो जाता है।

निष्कर्ष

'मैला आँचल' केवल अतीत का दस्तावेज नहीं, बल्कि आज के भारत की भी कहानी कहता है। राजनीति, सामाजिक असमानता, आर्थिक शोषण, और ग्रामीण जीवन की जटिलताएँ आज भी इसे प्रासंगिक बनाए हुए हैं। इसीलिए, यह उपन्यास केवल साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि एक सामाजिक दर्पण है, जिसमें भारत का ग्रामीण यथार्थ साफ़ झलकता है।

'मैला आँचल' उपन्यास और उसकी समकालीनता

फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित 'मैला आँचल' (1954) हिंदी साहित्य का एक कालजयी उपन्यास है, जिसे आंचलिक उपन्यास लेखन की परंपरा में मील का पत्थर माना जाता है। यह बिहार के पूर्णिया जिले के ग्रामीण जीवन को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है।

समकालीनता के संदर्भ में 'मैला आँचल'

1. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

'मैला आँचल' स्वतंत्रता के बाद के भारतीय समाज का चित्रण करता है, जहाँ स्वतंत्रता संग्राम की ऊर्जा और नई राजनीति की जटिलताएँ स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती हैं। आज भी भारत में ग्राम्य राजनीति, जातिवाद, भ्रष्टाचार, और विकास की असमानता जैसी समस्याएँ मौजूद हैं, जो इस उपन्यास को समकालीन बनाती हैं।

2. सामाजिक यथार्थ

यह उपन्यास ग्रामीण समाज की कड़वी सच्चाइयों को उजागर करता है—जातिगत भेदभाव, स्त्रियों की स्थिति, गरीबी, अशिक्षा और अंधविश्वास। ये समस्याएँ आज भी भारतीय ग्रामीण समाज में प्रासंगिक हैं, जिससे उपन्यास की समकालीनता बनी रहती है।

3. आर्थिक असमानता

रेणु ने गाँवों में व्याप्त सामंतवादी व्यवस्था, आर्थिक शोषण और गरीबी को दर्शाया है। भारत में आज भी ग्रामीण इलाकों में आर्थिक असमानता और किसानों की समस्याएँ वैसी ही बनी हुई हैं, जिससे यह उपन्यास आज भी सामयिक प्रतीत होता है।

4. सांस्कृतिक और भाषाई समृद्धि

'मैला आँचल' में स्थानीय बोलियों, कहावतों, लोकगीतों और लोककथाओं का समावेश किया गया है, जो आज भी क्षेत्रीय साहित्य और सिनेमा को प्रभावित करता है। स्थानीय भाषाओं और लोकसंस्कृति के प्रति रुचि बढ़ने के कारण यह उपन्यास आज भी समीचीन बना हुआ है।

5. चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएँ

डॉ. प्रशांत की कथा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा को दर्शाती है। आज भी ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ अपर्याप्त हैं, जिससे यह उपन्यास आधुनिक संदर्भ में भी प्रासंगिक हो जाता है

'मैला आँचल' केवल अतीत का दस्तावेज नहीं, बल्कि आज के भारत की भी कहानी कहता है। राजनीति, सामाजिक असमानता, आर्थिक शोषण, और ग्रामीण जीवन की जटिलताएँ आज भी इसे प्रासंगिक बनाए हुए हैं। इसीलिए, यह उपन्यास केवल साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि एक सामाजिक दर्पण है, जिसमें भारत का ग्रामीण यथार्थ साफ़ झलकता है।


'मैला आँचल' में डॉ. प्रशांत के प्रेम तत्व की विशालता

फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास 'मैला आँचल' के नायक डॉ. प्रशांत न केवल एक चिकित्सक हैं, बल्कि एक संवेदनशील, आदर्शवादी और सहृदय व्यक्ति भी हैं। उनके प्रेम का स्वरूप केवल निजी, रोमांटिक प्रेम तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह एक व्यापक सामाजिक प्रेम का रूप ले लेता है। उनका प्रेम त्याग, करुणा और सेवा का प्रतीक बनकर उभरता है।

1. डॉ. प्रशांत और कमली का प्रेम

डॉ. प्रशांत का कमली के प्रति प्रेम पारंपरिक प्रेम से अलग है। वह केवल शारीरिक आकर्षण पर आधारित नहीं, बल्कि सहानुभूति, त्याग और समर्पण पर टिका है। कमली एक आदिवासी लड़की है, जिसका जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। डॉ. प्रशांत उससे प्रेम तो करते हैं, लेकिन सामाजिक परिस्थितियाँ और उनके आदर्शवादी विचार उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर कर देते हैं। यह प्रेम विरह और बलिदान का प्रतीक बन जाता है।

2. डॉ. प्रशांत का मानवता के प्रति प्रेम

डॉ. प्रशांत का प्रेम केवल किसी एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि वह पूरे गाँव के लिए समर्पित हैं। वे अपनी चिकित्सा सेवा के माध्यम से गरीबों और असहायों की निस्वार्थ सेवा करते हैं। यह व्यक्तिगत प्रेम से सामाजिक प्रेम तक का विस्तार दर्शाता है।

3. प्रेम का त्यागमय स्वरूप

डॉ. प्रशांत का प्रेम आत्मिक और त्यागपूर्ण है। कमली से गहरा प्रेम होने के बावजूद, वह अपने कर्तव्य और आदर्शों को प्राथमिकता देते हैं। यह प्रेम त्याग और बलिदान की भावना से ओतप्रोत है, जो इसे और भी विशाल बना देता है।

4. प्रेम और करुणा का मेल

डॉ. प्रशांत का प्रेम केवल एक व्यक्ति या समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि वह समस्त मानवता के प्रति प्रेम रखते हैं। उनकी करुणा और सेवा-भावना उनके प्रेम को एक विस्तृत, उदात्त और आदर्शवादी स्वरूप प्रदान करती है।

निष्कर्ष

डॉ. प्रशांत का प्रेम केवल रोमांटिक प्रेम नहीं, बल्कि एक आदर्शवादी, त्यागमय और करुणामय प्रेम है। यह प्रेम व्यक्ति से समाज तक विस्तृत है और सच्चे प्रेम के विशाल स्वरूप को दर्शाता है। उनका प्रेम संवेदनशीलता, कर्तव्यनिष्ठा और बलिदान का प्रतीक बनकर पाठकों को प्रेरित करता है।

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डॉ जोसेफ मर्फी द्वारा रचित "अवचेतन मन की शक्ति" का भारतीय तंत्र -मंत्र के साथ तारतम्यता का विस्तार पूर्वक वर्णन करें।

डॉ. जोसेफ मर्फी की पुस्तक "अवचेतन मन की शक्ति" (The Power of Your Subconscious Mind) आत्म-सुधार और मनोवैज्ञानिक आध्यात्मिकता पर आधारित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो यह समझाने का प्रयास करता है कि कैसे हमारा अवचेतन मन हमारे विचारों और विश्वासों के आधार पर वास्तविकता को आकार देता है। यदि हम इस पुस्तक की शिक्षाओं को भारतीय तंत्र-मंत्र और आध्यात्मिकता के संदर्भ में देखें, तो कई समानताएँ और गहरे संबंध स्पष्ट होते हैं।

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1. अवचेतन मन और भारतीय तंत्र-मंत्र का संबंध

भारतीय तंत्र-मंत्र और योग शास्त्र में यह मान्यता है कि मनुष्य की चेतना तीन भागों में विभाजित होती है—

  • चेतन मन (Conscious Mind) – जो जाग्रत अवस्था में विचार करता है।
  • अवचेतन मन (Subconscious Mind) – जो गहरे विश्वास, आदतों और संस्कारों का भंडार है।
  • अतिचेतन मन (Superconscious Mind) – जो दिव्य ऊर्जा और ब्रह्माण्डीय शक्ति से जुड़ा होता है।

डॉ. मर्फी की अवधारणाओं को यदि भारतीय तंत्र के साथ जोड़ें, तो हमें यह ज्ञात होता है कि तंत्र-मार्ग में ध्यान, मंत्र-जप और साधना के माध्यम से अवचेतन मन को पुनःप्रोग्राम किया जाता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में इच्छित बदलाव ला सकता है।


2. मंत्र-जप और अवचेतन मन

डॉ. मर्फी कहते हैं कि सकारात्मक पुष्टि (Affirmations) और कल्पना (Visualization) से अवचेतन मन को प्रभावित किया जा सकता है। भारतीय तंत्र में इसका समान रूप मंत्र-जप और ध्यान-साधना में मिलता है। उदाहरण के लिए—

  • गायत्री मंत्र – "ॐ भूर्भुवः स्वः..." का जप करने से मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
  • महामृत्युंजय मंत्र – "ॐ त्र्यम्बकं यजामहे..." का जप नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
  • श्रीं मंत्र (महालक्ष्मी मंत्र) – धन और समृद्धि आकर्षित करता है।

डॉ. मर्फी का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति निरंतर किसी विचार को दोहराए (Affirmations), तो वह विचार अवचेतन मन में स्थापित हो जाता है और वास्तविकता बन जाता है। इसी प्रकार, भारतीय तंत्र कहता है कि जब कोई व्यक्ति किसी मंत्र का लगातार जप करता है, तो वह मंत्र उसके चित्त में गहराई से समा जाता है और ऊर्जा के रूप में प्रकट होता है।


3. ध्यान-साधना और अवचेतन मन का प्रोग्रामिंग

भारतीय तंत्र में ध्यान (Meditation) का बहुत बड़ा महत्व है। ध्यान का मुख्य उद्देश्य अवचेतन मन की शक्ति को जागृत करना और उसे नियंत्रित करना है।

डॉ. मर्फी ने भी अपनी पुस्तक में ध्यान और विज़ुअलाइज़ेशन (Visualization) की शक्ति को बहुत महत्वपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि यदि कोई व्यक्ति हर दिन शांत होकर यह कल्पना करे कि उसकी इच्छाएँ पूरी हो रही हैं, तो वह धीरे-धीरे सच होने लगती हैं।

तंत्र शास्त्रों में कहा गया है कि जब व्यक्ति अपने मन को एक विशेष लक्ष्य पर केंद्रित करता है (ध्यान), तो वह ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है। योग और तंत्र में त्राटक साधना, कुंडलिनी जागरण, और मंत्र साधना अवचेतन मन को सक्रिय करने के लिए ही की जाती है।


4. संकल्प शक्ति और कर्म सिद्धांत

डॉ. मर्फी कहते हैं कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। यदि वह सकारात्मक विचारों से अपने अवचेतन मन को प्रोग्राम करे, तो उसका भविष्य वैसा ही बनेगा।

यही बात भारतीय तंत्र-शास्त्र और वेदों में भी कही गई है। भारतीय दर्शन के अनुसार—

  • "यद्भावं तद्भवति" – जैसा सोचोगे, वैसा ही होगा।
  • "संकल्प सिद्धिः" – यदि संकल्प दृढ़ हो, तो असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं।
  • कर्म सिद्धांत – अच्छे कर्म और विचार अच्छे परिणाम लाते हैं।

तंत्र-मंत्र में भी यही कहा गया है कि यदि व्यक्ति किसी मंत्र, यंत्र या ध्यान साधना को पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ करे, तो उसका अवचेतन मन शक्तिशाली हो जाता है और इच्छित परिणाम मिलने लगते हैं।


5. कुंडलिनी जागरण और अवचेतन मन

भारतीय योग और तंत्र साधना में कुंडलिनी शक्ति का बड़ा महत्व है। यह शक्ति मूलाधार चक्र (Root Chakra) में सुप्त अवस्था में रहती है और साधना द्वारा इसे जाग्रत किया जाता है।

डॉ. मर्फी की अवधारणाओं के अनुसार—

  • अवचेतन मन में असीमित शक्ति है, जो यदि जागृत हो जाए, तो व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है।
  • भारतीय योगियों का कहना है कि जब कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है, तो व्यक्ति में अलौकिक शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं।
  • दोनों ही दृष्टिकोण यह बताते हैं कि मनुष्य के अंदर ही अपार ऊर्जा और शक्ति है, जिसे साधना द्वारा सक्रिय किया जा सकता है

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डॉ. जोसेफ मर्फी की अवधारणाएँ भारतीय तंत्र-मंत्र, योग और ध्यान से पूरी तरह मेल खाती हैं। उनका मुख्य संदेश यह है कि आपका अवचेतन मन बहुत शक्तिशाली है, और यदि आप इसे सही तरीके से प्रोग्राम करें, तो चमत्कार कर सकते हैं। यही बात भारतीय तंत्र-मार्ग में भी कही गई है—

  • मंत्र-जप अवचेतन को प्रभावित करता है।
  • ध्यान-साधना मन को केंद्रित करती है।
  • संकल्प शक्ति भाग्य बदल सकती है।
  • कुंडलिनी जागरण चेतना को उच्च स्तर पर ले जाता है।

इसलिए, यदि हम डॉ. मर्फी की शिक्षा को भारतीय तंत्र-मार्ग के साथ जोड़कर देखें, तो यह स्पष्ट होता है कि हम अपने अवचेतन मन की शक्ति को पहचानकर, सही अभ्यास और विश्वास के साथ जीवन में हर वह चीज़ प्राप्त कर सकते हैं, जिसकी हम आकांक्षा रखते हैं

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

"दीवार में एक खिड़की रहती थी " नामक उपन्यास का अवलोकन।

 "दीवार में एक खिड़की रहती थी" उपन्यास विनोद कुमार शुक्ल द्वारा लिखा गया है।

उपन्यास का कथ्य:

यह उपन्यास एक आम आदमी के जीवन की साधारण लेकिन गहरी अनुभूतियों को व्यक्त करता है। लेखक ने इसमें सामाजिक व्यवस्थाओं, निजी सपनों, और मानवीय संवेदनाओं को बेहद सूक्ष्मता से उकेरा है।

कहानी एक ऐसे किराए के घर में रहने वाले व्यक्ति की है, जो अपनी सीमित दुनिया में रहते हुए भी एक अलग दृष्टि से जीवन को देखता है। घर की दीवार में बनी खिड़की उसके लिए सिर्फ एक वास्तुशिल्पीय संरचना नहीं, बल्कि एक नई दुनिया की झलक, संभावनाओं का प्रतीक और उसकी कल्पनाशीलता की उड़ान है।

मुख्य विषयवस्तु:

  1. साधारण जीवन की गहराइयाँ – लेखक ने आम आदमी की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में छिपे सौंदर्य को उभारा है।
  2. कल्पना और वास्तविकता का द्वंद्व – खिड़की एक माध्यम है, जो पात्र को जीवन के अलग-अलग पहलुओं को देखने का अवसर देती है।
  3. संवेदनशील भाषा और शैली – विनोद कुमार शुक्ल की लेखन शैली बेहद सरल लेकिन प्रभावशाली है, जो पाठकों को उनके किरदारों से जोड़ती है।
  4. आधुनिक जीवन की विडंबना – समाज में मौजूद सीमाओं, बंदिशों और अकेलेपन को भी दर्शाया गया है।

निष्कर्ष:

"दीवार में एक खिड़की रहती थी" केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक गहरी दार्शनिक सोच और मानवीय संवेदनाओं का दस्तावेज़ है। इसमें लेखक ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि हमारी सीमित दुनिया में भी एक खिड़की होती है, जो हमें बाहर की दुनिया से जोड़ती है और हमें सोचने, देखने और महसूस करने का एक नया दृष्टिकोण देती है।

क्रोध का शरीर में असर

क्रोध (Anger) के समय हमारे मस्तिष्क और शरीर में कुछ प्रमुख रसायन (Neurochemicals और Hormones) रिलीज़ होते हैं, जो तुरंत शारीरिक और मानसिक प...