शनिवार, 12 अगस्त 2023

चीन में गिरती क़ीमतें क्यों हैं दुनिया के लिए चिंता की बात, भारत पर क्या होगा असर।

चीन की अर्थव्यवस्था एक नई परेशानी से जूझ रही है. बीते दो सालों के वक्त में पहली बार इस साल जुलाई में देश में उपभोक्ता सामान की क़ीमतें सामान्य से कम रही हैं.

महंगाई को आंकने वाले उपभोक्ता सूचकांक के अनुसार बीते महीने चीज़ों की क़ीमतें सालभर पहले की स्थिति के मुक़ाबले 0.3 फ़ीसदी और कम हो गई हैं.

देश डीफ्लेशन यानी अवस्फ़ीति की स्थिति का सामना कर रहा है. अवस्फ़ीति की स्थिति तब पैदा होती है जब बाज़ार में चीज़ों की मांग कम हो जाती है, या तो उत्पादन ज़रूरत से अधिक होता है या फिर उपभोक्ता पैसा खर्च नहीं करना चाहिये।।               

चीन के सामने मौजूद मुश्किलें


कोविड महामारी का मुक़ाबला करने के लिए चीन ने 2020 में बेहद कड़ी पाबंदियां लगाई थीं. दुनिया के सभी देश महामारी के असर से बाहर निकले और धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी, चीन की अर्थव्यवस्था संकट से जूझ रही थी.

एक तरफ महामारी के कारण सप्लाई चेन ठप पड़ गई थी और चीन का घरेलू बाज़ार लगभग थम गया तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका समेत कुछ और देश चीन से व्यापारिक रिश्ते तोड़ने की बात कर रहे थे.

मंगलवार को अधिकारियों ने देश के आयात-निर्यात से जुड़े आंकड़े जारी किए. इसके अनुसार बीते साल जुलाई के मुक़ाबले चीन का निर्यात इस साल जुलाई में 14.5 फ़ीसदी कम रहा जबकि उसका अयात 12.4 फ़ीसदी गिरा.

चीन में स्थानीय सरकारें कर्ज़ के बोझ तले दबी हैं, भ्रष्टाचार रोकने के लिए नियामक कंपनियों पर नकेल कसने की कोशिश में लगे हैं और युवाओं में बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर है.

कुछ जानकार मानते हैं कि ये आंकड़े चिंता का सबब बन सकते हैं. अगर स्थिति कुछ और वक्त तक जारी रही तो चीन की आर्थिक विकास दर इस साल और कम रह सकती है. देश में खर्च पहले ही कम है, इस कारण उत्पादन भी कम हो सकता है जो बेरोज़गारी भी बढ़ सकती है.

हालांकि ये बात भी सच है कि मौजूदा वक्त में चीन घरेलू स्तर पर भी बड़ी उथल-पुथल से जूझ रहा है.

उसका बीते कुछ वक्त से रीयल इस्टेट बाज़ार मुश्किलों से घिरा हुआ है. देश की सबसे रीयल इस्टेट कंपनी एवरग्रैंड दिवालिया होने की कगार पर है और सरकार इस सेक्टर को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रही है.        चीन की लगभग स्थिर विकास दर कोविड महामारी के बाद 2020 में तेज़ी से गिरी और सालभर पहले 6.0 से 2.2 पर आकर रुकी. इसके बाद उसकी अर्थव्यवस्था ने तेज़ी से उछाल मारा और 2021 में 8.4 तक पहुंची.

वर्ल्ड बैंक के अनुसार बीते साल के आंकड़ों को देखें तो आयात और निर्यात दोनों में गिरावट आने के कारण देश की विकास दर घटकर 3 तक आ गई जो 1976 के बाद से अब तक (कोविड महामारी के साल को छोड़कर) सबसे कम थी.

चीन का निर्यात बीते साल जुलाई के मुक़ाबले इस साल जुलाई में 14.5 फीसदी और आयात 12.5 गिर गया है.

ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के अनुसार चीन ने इससे पहले महीने यानी जून 2023 में 285.32 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया था जो जुलाई में कम हो कर 281.76 अरब डॉलर हो गया, वहीं आयात जहां जून में 214.70 अरब अमेरिकी डॉलर था, जुलाई में 201.16 अरब डॉलर तक आ गया.

जून में चीन का निर्यात साल भर पहले के आंकड़े की तुलना में 12.4 फीसदी और आयात 68 फीसद कम हो गया था.              चीन की लगभग स्थिर विकास दर कोविड महामारी के बाद 2020 में तेज़ी से गिरी और सालभर पहले 6.0 से 2.2 पर आकर रुकी. इसके बाद उसकी अर्थव्यवस्था ने तेज़ी से उछाल मारा और 2021 में 8.4 तक पहुंची.

अवस्फ़ीति का क्या होगा दुनिया पर असर?

दूसरे मुल्कों की बात करें तो, चीन ऐसी बहुत सारी चीज़ों का उत्पादन करता है, जिसे वो दुनियाभर में बेचता है. अगर चीन में चीज़ों की क़ीमतें कम हुईं तो उसका फायदा ब्रिटेन जैसे उन देशों को हो सकता है जो चीन से सामान खरीदते हैं क्योंकि इससे उनका आयात बिल कम होगा.

लेकिन इसका नकारात्मक असर दूसरे मुल्कों के उत्पादकों पर पड़ेगा जो चीन के सस्ते सामान के मुक़ाबले अपना सामान बेच नहीं पाएंगे. इससे उन मुल्कों में निवेश में कमी आ सकती है और बेरोज़गारी बढ़ सकती है.

प्रोफ़ेसर फ़ैसल अहमद कहते हैं, "चूंकि चीन अपना उत्पादन सस्ता कर रहा है, ज़ाहिर है कि इसका असर दूसरे मुल्कों की कंपनियों पर पड़ेगा. जो मुल्क चाहते हैं कि वो देश के भीतर ही उत्पादन करें, उनके व्यापार को चीन लुभा सकता है."

बीते कुछ वक्त में कई मुल्कों की कोशिश है कि वो चीन से अपना उत्पादन ख़त्म करें और दूसरे मुल्कों का रुख़ करें.

इन मामलों में अमेरिका आगे है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2019 में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून का हवाला देते हुए कहा था कि अमेरिकी व्यापार के लिए चीन सुरक्षित जगह नहीं. उन्होंने कंपनियों से आग्रह किया था कि वो चीन से बाहर निकलें.

चीन भी ये जानता है कि मौजूदा वक्त में कई देश उसे उत्पादन के सेंटर के तौर पर नहीं देखना चाहते इसलिए वो भी ऐसी नीति चाहता है जिससे वो चीन में उत्पादन का खर्च इतना कम कर देना चाहता है कि दूसरों के लिए देश के भीतर उत्पादन की बजाय चीन से आयात बेहतर विकल्प हो.

वो अपने भविष्य को देखते हुए योजना बना रहा है. एक तरफ वो वो ये सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि वो आने वाले वक्त में सप्लाई चेन की अहम कड़ी बना रहे, तो दूसरी तरफ से भी कोशिश कर रहा है कि उसका घरेलू बाज़ार मज़बूत बने.                                            

क्या भारत पर भी होगा असर?

रही भारत की बात तो भारत पहले भी आयात के मामले पर चीन पर निर्भर रहा है और ये उम्मीद करना कि इसमें आने वाले सालों में बदलाव आएगा सही नहीं होगा.

लेकिन मुश्किल ये है कि भारत और चीन के बीच कोई मुक्त व्यापार समझौता नहीं है, ऐसे में उसे चीन से सस्ता सामान सीधे नहीं मिल सकेगा.

प्रोफ़ेसर फ़ैसल अहमद कहते हैं, "आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी, नवंबर 2019 में भारत इससे बाहर हो गया था) के देशों को ये सामान सस्ते में मिलेगा और भारत को उनसे ये सामान मिल सकता है. ये भारत के लिए बड़ी चुनौती है."

वो कहते हैं आसियान देशों के साथ चीन का व्यापार समझौता है और इसके साथ भारत का भी मुक्त व्यापार समझौता है. भारत इसके नियमों में बदलाव चाहता है ताकि उसे सस्ते में चीज़ें मिलें और उसका आयात घाटा कम हो सके.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

The One Thing written by Gary Keller and Jay papasan

The one thing The One Thing "The One Thing" किताब Gary Keller और Jay Papasan द्वारा लिखी गई है। इसका मुख्य संदेश है: "अ...